ले चल मुझे इस जहान से दूर, जहां ना हो आदमी मजबूर। टूट कर सपने हो गए चूर, फिर भी ना गई झूठी शान और गुरूर। क्यों सहम जाती है गलियां, और सुर्ख हवाओं का सुरूर। आया क्यूं था, तू अपने घर से इतनी दूर। जिंदगी क्यूं हो इतनी मजबूर, गर हो जवाब ; मुझे भी फरमाइएगा जरूर।
Comments...
Ritik: Nice post
Sunil verma: Thanks
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